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13 May 2020

काले-काले फालसे


बचपन में कभी 8-10 रुपये प्रति किलो मिलने वाली यह चीज अब 200-300 रुपये प्रति किलो के भाव मिलती है। एक समय था जब मई -जून के महीने में न जाने कितनी ही बार कभी पापा तो कभी बाबा जी खरबूजा और तरबूज के साथ ही यह भी खरीदा करते थे। फालसे का शर्बत स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्यवर्धक भी होता है, लेकिन मैं ऐसे ही खाना ज्यादा पसंद करता हूँ। पापा बताते हैं कि आम तौर पर कोई फल खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए लेकिन अपवाद स्वरूप खरबूजा, बेल और फालसा ये तीन ऐसे फल हैं जिन्हें खाने के बाद पानी पिया जा सकता है।
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एक बात और शहरीकरण का असर फालसे की खेती पर भी पड़ा है। आज फेरी वाला बता रहा था कि पेड़ कम होने के साथ ही लोगों की घटती पसंद भी इसकी बढ़ती कीमत का कारण है। लोग 20-25 रु की एक सिगरेट तो खरीद सकते हैं लेकिन इतनी ही कीमत में 100 ग्राम फालसा खरीदना उन्हें अपनी तौहीन लगता है।

-यशवन्त माथुर ©
13/05/2020

6 comments:

  1. रोचक जानकारी, वर्षों पहले उत्तर भारत में हमने भी खाया था यह फल, पर बंगलौर में यह नहीं मिलता

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  2. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (15-05-2020) को
    "ढाई आखर में छिपा, दुनियाभर का सार" (चर्चा अंक-3702)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।
    …...
    "मीना भारद्वाज"

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  3. बहुत सही कहा आपने।
    अब तो बाजार में फालसों से दर्शन भी दुर्लभ हो गये हैं।

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  4. फ़ालसे ,करौंदे ,इमली,जंगलजलेबी ,कैथ आदि सहज प्राप्त चीज़े अब दुर्लभ हो गई हैं,लगता है उनके दिन ही बीत गए - उनकी जगह ले ली है तमाम भड़कीले आइटमों ने.

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  5. बचपन की याद दिला दी आपने ,अब अगर ये लुप्त होता फल मिलता भी हैं तो भी वो स्वाद कहाँ ,सादर नमन

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  6. जी सच लिखा है अपने अब तो फालसे दिखते ही नहीं।

    हम भी इसे बचपन मे पसंद करते थे, जब फालसे वाला बाबा आता था तो कहता हुआ जाता था

    काले काले फालसे
    फालसे नमक लगाके खाले
    फालसे कुलड़ मेकड खाले
    खाले नमक लगाके खाले

    बचपन के दिन फिर याद आ गए इसकी फ़ोटो देखकर।

    💐💐💐

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