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03 May 2020

सच

झूठ और फरेब की
इस मायावी दुनिया में 
सच सबसे अलग 
कभी बहादुर 
कभी बेबस सा दिखता है 
भावनाओं के कहीं किसी कोने में 
पड़ा  हुआ 
धिक्कारों 
और बरसते पत्थरों के 
अनगिनत वार झेलता हुआ 
इस प्रतीक्षा में रहता है 
कि कहीं 
कोई उसे स्वीकार करके 
बाकी दुनिया को 
दिखा दे 
उसके जीवित होने के प्रमाण। 
सच निष्कपट होता है 
शुद्ध होता है 
नवजात शिशु की तरह 
जिसे  बोध नहीं होता 
भावी तिलिस्मी जीवन का
और जब वह आगे बढ़ता है 
देखता है कई ढंग 
तो उसकी शुद्धता के ऊपर 
जम जाते हैं कई रंग 
जो बदल देते हैं 
उसे हमेशा के लिए। 
अमरत्व का वरदान लिए हुए 
सच सिर्फ 
सच ही रहता है 
यह और बात है 
कि वह भीतर ही होता है 
विपरीत ही होता है 
बहती धारा के 
आदि और अंत के। 

-यशवन्त माथुर ©
03/05/2020

3 comments:

  1. ये सच है कि सच लाख परदों में छिपा हो वह एक दिन सबके सामने आता जरूर है
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. सच बेबस सा दिखता भले हो पर वह कभी बेबस नहीं होता,बदलता हुआ सा दिखता है पर कभी बदलता नहीं, उसे उजागर करने के लिए चाहिए कोई कबीर कोई मीरा, प्रभावशाली सुंदर रचना !

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  3. सार्थक विश्लेषण।
    झूठ की पंचायत में सच को खामोश ही होना पड़ता है।

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