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16 September 2010

चाय का प्याला

सहता है तपन
पर डिगता नहीं है
थकान में चूर हो जाता है,
पर हिलता नहीं है
चाय का प्याला!
किसी महापुरुष की तरह,
प्रेरणा देता है,
झंझावातों में भी
स्थिर,अटल रहने की
चाय हो या कोई और
गरम द्रव पदार्थ
अणुओं की टकराहट सहता,
और दिखाता है यथार्थ
हार होगी तुम्हारे दुश्मनों की,
तैयार रहोगे यदि,
सहने को हर वार
कुछ पल में ठन्डे पड़ जाएँगे 'वो'
चाय की ही तरह
और तुम मनाओगे
जीत का जश्न,
चाय के प्याले की तरह..
 
विशेष:-मुझे याद नहीं ये कविता मैंने बचपन में कब लिखी थी,किन्तु अपनी मम्मी के विशेष आग्रह पर उनकी पसंद की ये कविता आप सब के साथ साझा कर रहा हूँ.
 

8 comments:

  1. क्या कहा ? यह कविता आपने बचपन में लिखी थी ।

    मजाक न करो जी ।

    बहुत अच्छी लगी आपकी कविता ।

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  2. विवेक जी,
    ये मजाक नहीं सच है,आठ साल की उम्र में पापा को लेख लिखते देख कर मैंने सोचा कि पापा तो लेख लिखते हैं,क्यों न मैं कविता लिखूं और तब से कुछ न कुछ जो मन में आता है लिख ने की कोशिश कर रहा हूँ.
    इस पोस्ट के प्रकाशित होने के मात्र ५ मिनट के भीतर आप की त्वरित टिप्पणी के लिए दिल से शुक्रिया.

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  3. अले वाह, कित्ती सुन्दर कविता..बधाई.

    ______________

    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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  4. मेरी प्यारी पाखी
    तुम पंख पसारे मेरे ब्लॉग पर आयी मुझे बहुत अच्छा लगा.
    जानती हो मुझे भी तुम जैसे छोटे छोटे बच्चों से बहुत प्यार है,तुम मुझ से बहुत छोटी हो इसलिए आशीर्वाद भी है ही.
    मैं भी तुम्हारे ब्लॉग पर आया था बहुत अच्छा लगा.बहुत जल्द ही तुम्हारी drawings पर लिख ने कि कोशिश करूँगा.

    with my heartfelt love to you--

    Yashwant

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  5. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता

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  6. शुक्रिया अरविन्द जी

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  7. Itani sundar kavita aapane bachapan me hi likhadi...accha kiya jo mammi ka kaha mana
    bhadiya lagi...Shubhkaamnaaen

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  8. आदरणीया रानी जी,
    सात समुन्दर पार से मेरा उत्साह बढाने के लिए आप को तहे दिल से शुक्रिया.

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