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14 February 2013

मेरे लिए मुमकिन नहीं!

कभी कभी
औरों की तरह
मैं भी कोशिश करता हूँ
प्यार पर लिखने की
प्यार को परिभाषित करने की
‘तुम’ से ‘मैं’ की बात कहने की
दिल के भीतर हिलोरें लेते
बसंत की कुछ सुनने की
महसूस करने की
पर बुद्धि और सोच का छोटापन
समझने नहीं देता
कि प्यार क्या है
सिवाय इसके
कि प्यार सिर्फ प्यार है
जिसे शब्द देना
मेरे लिए मुमकिन नहीं!

©यशवन्त माथुर©

19 comments:

  1. होता हूँ नि:शब्द मैं, सुन बातें यशवन्त |
    छोटी छोटी पंक्तियाँ, भरते भाव अनन्त |
    भरते भाव अनन्त, प्यार का भरा समन्दर |
    करता रविकर पैठ, उतरकर पूरा अन्दर |
    प्रियवर है आशीष, लगाओ तुम भी गोता |
    प्यार प्यार ही प्यार, सत्य यह शाश्वत होता ||

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  2. प्रेम को शब्दों में बांधना कहाँ सरल है.....

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  3. कम शब्दों में ही प्रेम को परिभाषित करती ...सुंदर अभिव्यक्ति यशवंत ......

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  4. बात तो सही है प्यार को शब्द देना मुश्किल है..
    पर शब्दों से अगर प्यार का इजहार करे तो
    बहुत ही अच्छा होता है..बहुत सुन्दर रचना...

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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  6. मंगलवार 19/02/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
    आपके सुझावों का स्वागत है .... !!
    धन्यवाद .... !!

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  7. सुन्दर प्रस्तुति.
    प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
    प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है

    प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
    प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है

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  8. thik kaha pyar pyar hai kyonki iska bahut vistar hai.tjis the care we show to everybody close to us

    गुज़ारिश : ''बसंत है आया''

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  9. प्यार की इससे सरल और सटीक परिभाषा नही हो सकती की इसे बयान ही नही किया जा सकता की क्या हुआ मुझे .

    :)

    बहुत अच्छे भाई !!

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  10. बहुत ही सुन्दर ...

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  11. प्यार को परिभाषित करना कहाँ इतना सहज है ... बहुत सुंदर

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  12. यशवंत भाई बढ़िया लिखा है | आनंद आ गया |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  13. तभी तो कहा है शायर ने-प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो..

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  14. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  15. यशवन्त माथुर जी वहा वहा क्या खूब कहा है आपने पर इस प्रेम को परिभाषित करना हम मनुष्यों के बस की बात नहीं इस तो भगवान श्री कृष्ण भी परिभाषित नहीं कर पाए

    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  16. कौन कहता है तुम्हें कि परिभाषित करो प्यार को...
    प्यार किया है ये क्या कम है :-)

    सस्नेह
    अनु

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