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09 June 2012

'मैं' और 'वो'

मुझे फिकर है
बिजली जाने की
इन्टरनेट से
दूर हो जाने की
मुझे फिकर है
खुद की
खुद के घर की
मुझे फिकर है
औरों के सुख की
खुद के दुख की
मुझे फिकर है
सिर्फ उनकी
जिन्हें मैं जानता हूँ
पहचानता हूँ
क्योंकि
इस आवरण से
नहीं निकल सकता
बाहर
चाह कर भी

एक ये 'मैं' हूँ
घोर स्वार्थी
जो खुद के लिये
सिर्फ खुद का है 

और एक 'वो' है
जो सबके लिये
और सबका है
'वो'
जो खुद के घर से
मीलों दूर
रेगिस्तान की
तपती रेत में भी
तरोताजा है
'वो' जो
भयंकर शीत मे भी
जुझारू है
कभी बंकर के भीतर
कभी बाहर 
जिसके जज़्बात
दबे हुए हैं भीतर कहीं
जो एक पल को
शायद कभी
कुलबुलाता है
जब कोई उसकी
राह देखता
बुलाता है 

'वो'
जो सैनिक है
मुझ से
बहुत अच्छा है
'मैं' कागजी शेर हूँ
और 'वो'
सच में दहाड़ता है।

  
©यशवन्त माथुर©

20 comments:

  1. वो'
    जो सैनिक है
    मुझ से
    बहुत अच्छा है
    'मैं' कागजी शेर हूँ
    और 'वो'
    सच में दहाड़ता है। bhaut hi behtreen...

    ReplyDelete
  2. मन के द्वंद्ध को परिभाषित करती रचना ...

    ReplyDelete
  3. मुझे फिकर है
    सिर्फ उनकी
    जिन्हें मैं जानता हूँ
    पहचानता हूँ
    क्योंकि
    इस आवरण से
    नहीं निकल सकता
    बाहर
    चाह कर भी....
    बधाई ...यसवंत जी

    ReplyDelete
  4. सच कहा यशवंत .....यह मरते हैं...की हम शान से जी सकें

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  5. आपकी कविता में यथार्थ का चित्रण हुआ है

    ReplyDelete
  6. वो'
    जो सैनिक है
    मुझ से
    बहुत अच्छा है
    'मैं' कागजी शेर हूँ
    और 'वो'
    सच में दहाड़ता है।

    बहुत अच्छे.....!

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  7. क्या खूब लिखा है आपने .....कमाल हैं आप भी !

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  8. दोनो का हि अपना महत्व है जी....
    गहन अभिव्यक्ती....
    :-)

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  9. खुद को तौलना और तौलते रहना जरूरी है एक जिम्मेदार नागरिक के लिए .........आप समझते हैं अपनी जिम्मेदारियां ...भले ही कलम के जरिये हों ...लेकिन हैं तो ............

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  10. 'वो'
    जो सैनिक है
    मुझ से
    बहुत अच्छा है....
    'मैं' कागजी शेर हूँ
    और 'वो'
    सच में दहाड़ता है।
    तुलना नहीं अच्छे-बुरे का
    अलग-अलग काम केलिए ,
    अलग-अलग इंसान होता ....
    कलम की दहाड़ भी सब के बस में कहाँ होता ....

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  11. On mail by-Yashoda Agarwal ji

    वाकई भाई
    एकदम सच

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  12. खुद को जानना खुद को समझना जीवन को और सुगम बनाता है .बहुत गहन अभिव्यक्ति लिख डाली ....शुभकामनाएं.यशवन्त !

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  13. इतना ईमानदार आत्म-विश्‍लेषण ! मन को गहरे तक प्रभावित कर गई आपकी सच्चाई और यह कविता!
    ईश्‍वर आपको खूब तरक्‍की दे ! आमीन!

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  14. कलम भी तलवार से कम नहीं है, सदियाँ, इतिहास गवाह हैं. दोनों का अपना - अपना स्थान है. शुभकामनायें

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  15. बहुत गहन और सार्थक आत्म विश्लेषण .....बधाई!

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  16. 'वो'
    जो सैनिक है
    मुझ से
    बहुत अच्छा है
    'मैं' कागजी शेर हूँ
    और 'वो'
    सच में दहाड़ता है।

    बहुत सुंदर कहा, लेकिन वो सीमा पर है तो कलमकार बगैर बन्दूक के भी सिंहासन हिलाने की क्षमता रखता है वो बात और है कि वह खामोश कर दिया जाय.

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  17. वाह !! कमाल की रचना...
    बहुत पसंद आई!!

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  18. Bijli ne lagta hai kuch zyada hi pareshan kar diya hai :-
    )

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