©यशवन्त माथुर©
FB Status-14/06/2012
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
बहुत खूब।
ReplyDeleteक्षणिका बहुत अच्छी..............
ReplyDeleteउपनाम से वास्तविक नाम भला.....
निराश न हो...यश पाओ सदा.............
सस्नेह.
बहुत सुन्दर क्षणिका ...
ReplyDeleteइसका मतलब है कि पर्दों में चिराग बुझे बैठे हैं ☺
ReplyDeleteनिराश से यश ज्यादा सुन्दर है... अच्छी क्षणिका... शुभकामनायें
ReplyDeleteसुंदर क्षणिका
ReplyDeleteनिराश'=मेरा उपनाम जिसे बहुत कम प्रयोग करता हूँ।
ReplyDeleteआगे कभी भी प्रयोग नहीं कीजिएगा अनुरोध है .... !!
क्षणिका दिल को चोट पहुचाई ....
एक बार फिर से आपको सॉरी बोलना होगा ..... :O
बहुत खूब
ReplyDeleteBahut Badhiya
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत खूब.उपनाम में निराशा क्यों...?
ReplyDeleteबेहतरीन ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
सुंदर कहा है.
ReplyDeleteउपनाम को भूल कर सिर्फ अपना नाम याद रखो ..... यशवंत हो और यशस्वी बनो -:)
ReplyDelete16 जून 1994,13जून 1995,25 जून 1995 को माँ दादी और दादा को खो देने का दर्द की झलकियाँ थी ...मुझे समझने में भूल हुई इसलिए अपने कमेन्ट के लिए माफी मांगना चाहती हूँ SORRY तो बहुत कम होगा .... !!
ReplyDeleteइतना परेशान न हुआ कीजिये आंटी :)
Deleteआप सॉरी बोलेंगी तो कैसे काम चलेगा ?