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22 June 2012

'मुझे तो ढहना ही है'

शब्दों की उलझी हुई सी
बेतरतीब सी
इमारत -
भावनाओं की उथली
दलदली नींव पर
कब तक टिकेगी
पता नहीं 
पर जब तक
अस्तित्व में है
बेढब कलाकारी की
झूठी तारीफ़ों
सच्ची आलोचनाओं
तटस्थ दर्शकों की
चौंधियाती आँखों में
झांक कर
रोज़ 
कहती है
एक मौन सच-
'मुझे तो ढहना ही है'

 ©यशवन्त माथुर©

24 comments:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति सर जी ||

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  2. एक मौन सच-
    'मुझे तो ढहना ही है'

    मन के भावों की सुंदर सम्प्रेषण,,,,

    RECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,

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  3. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ..

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  4. बहुत सुन्दर .....

    सस्नेह.

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  5. बहुत खूबसूरत भाव सुन्दर रचना बहुत पसंद आई

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  6. गहन और सुन्दर।

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  7. जिस इमारत की नींव सत्य पर टिकी होती है उसे ढहने का भय नहीं होता...शब्दों के पीछे छिपा है सत्य !

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  8. ढहना तो है पर रह जाएँ निशाँ !

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  9. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...यशवन्त ..शुभकामनाएं..

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  10. नश्वर है सब ....बस कुछ पल की सांसों का लेखा जोखा है ...ढहना तो है ही एक दिन ...!!!गहन अभिव्यक्ति ...

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  11. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति...

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  13. चट्टानों पर नींव खड़ी कर
    भवन कभी ना ढह पायेगा
    इन पलकों को सीप बना ले
    अश्रु कभी ना बह पायेगा ||

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  14. **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
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    उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति


    हिडिम्बा टेकरी
    चलिए मेरे साथ



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

    ♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥


    ♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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  15. सुंदर और परिपक्व लेखन को दर्शाती सोच। बहुत बहुत बधाई

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  16. झूठी तारीफ़ों
    सच्ची आलोचनाओं
    तटस्थ दर्शकों की
    चौंधियाती आँखों में
    झांक कर
    रोज़
    कहती है
    एक मौन सच-
    'मुझे तो ढहना ही है'



    अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई...

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  17. झूठी तारीफ़ों
    सच्ची आलोचनाओं
    तटस्थ दर्शकों की
    चौंधियाती आँखों में
    झांक कर
    रोज़
    कहती है
    एक मौन सच-
    'मुझे तो ढहना ही है'

    बहुत गहन बात कह दी है .... सुंदर प्रस्तुति

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  18. On mail by--indira mukhopadhyay ji

    बहुत सच्ची और सुंदर कविता.

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  19. एक मौन सच-
    'मुझे तो ढहना ही है'
    एक निशानी छोड़ते हुए .... !!

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