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14 June 2012

अनकही बातें

कहीं रत जगे हैं 
कहीं अधूरी मुलाकातें हैं  
हवाओं की खामोशी में 
आती जाती सांसें हैं । 

डरता है कुछ कहने से 
मन की अजीब चाहतें हैं 
किसी कोने मे दबी हुई 
अब भी अनकही बातें हैं।

©यशवन्त माथुर©

15 comments:

  1. बहुत सुन्दर यशवंत..
    सस्नेह.

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  2. वाह ... बेहतरीन भाव संयोजन ...

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  3. बहुत सुन्दर यशवन्त...सस्नेह

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  4. अनकही बातें.....
    छुपी रहती है..
    अक्सर...
    हर किसी के
    पारिवरिक जीवन में..
    पर कविता के रूप में पढ़ी
    पहली बार...

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  5. वाह||||
    लाजवाब
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने

    एक मेरी तरफ से...
    कहना तो बहुत कुछ चाहते थे उनसे..
    पर इस जुबान ने साथ ना दिया
    कभी वक्त की ख़ामोशी में खामोश रह गए
    कभी उनकी ख़ामोशी ने कुछ कहने ना दिया..]
    :-)

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  6. बहुत खूब|||
    बहुत ही सुन्दर
    :-)

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  7. किसी कोने मे दबी हुई
    अब भी अनकही बातें हैं।

    बेहतरीन रचना,,,,,

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  8. बाते हैं ...बातो का क्या हैं ...

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  9. sundar panktiyan

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  10. किसी कोने मे दबी हुई
    अब भी अनकही बातें हैं।
    किसी अपने से कह डालिए
    अगर दुःख है तो आधा और
    सुख है तो दूना होना निश्चित है .... !!

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  11. बहुत खूब यशवंत जी!

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