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12 June 2012

क्षणिका

ए वक़्त !
बस इतना सा एहसान कर दे
धूल के गुबार की तरह
मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
और कहीं खो जाए
ज़मीं पर गिरने से पहले।

©यशवन्त माथुर©

31 comments:

  1. इस दो गज जमीन से कहां छुटकारा है यशवंत जी ...
    बहुत उम्दा बात कही है ...

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  2. बहुत सुन्दर अहसास....

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  3. वाह...बेजोड़ क्षणिका...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  4. धुल के गुबार की तरह क्यूँ ...बादलों की तरह उडो......
    और जम कर बरसो.......
    :-)
    सस्नेह

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  5. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |

    पैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||

    --

    बुधवारीय चर्चा मंच

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  6. *मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
    और कहीं खो जाए*
    नहीं - नहीं .... खोये नहीं ,हर ज़र्रा से यश फैले जिसका कभी भी अंत ना हो .... :)

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  7. वैसे ज़मीन से जुड़े रहने का अपना मज़ा है ...है न !

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  8. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  9. आपके ऐसा बेज़ार होने को मैं तनिक हँस कर देख रहा हूँ :))

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  10. on mail by Yashoda Agarwal Ji

    ए वक़्त !
    बस इतना सा एहसान कर दे..........
    क्या बात है..असाधारण सोच..

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  11. बहुत सुन्दर रचना...

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  12. गहन भाव ... बेहतरीन

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  13. बहुत भावमई अभिव्यक्ति

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  14. बहुत भावमई अभिव्यक्ति

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  15. छोटी परन्तु अच्छी रचना!

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