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17 February 2013

कहीं ऐसा तो नहीं

कहीं ऐसा तो नहीं
ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग को
धता बताते हुए
इंसानी संगत का
खुद पर असर जताते हुए
हो दरअसल यह सावन ही
और हम समझ बैठे हों बसंत
गली की कीचड़ में
डुबकी लगाते हुए
शहर में होते हुए
और गाँव का
धोखा खाते हुए। 
©यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. मौसम भी ज़माने के साथ रंग बदलने लगा है शायद.....
    :-)

    अनु

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  2. क्या बात कह दी यशवंत भाई | सोचने योग्य विचार है यह तो | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. शुभकामनायें आपको !

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  4. ये मौसम कुछ भी सोचने पर मजबूर कर देता है :):)

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  5. डरिये नहीं जो होगा सबके साथ एक जैसा होगा .शुभकामनाएं
    latest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
    atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !

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  6. बहुत खूब......वाकई ...ऐसी बारिश तो बसंत में कभी नहीं हुई ....:)

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  7. मौसम के रंग....
    ज़माने के संग.....!!

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  8. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 20/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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