जिन परछाईयों से
मैं बातें किया करता था
अक्सर
और चला करता था
उन परछाईयों का
राज़ खुल गया है
और मैं पछता रहा हूँ
आखिर
ये दोस्ती ही
क्यों की?
अक्सर
और चला करता था
हँसते हुए
आज उन परछाईयों का
राज़ खुल गया है
और मैं पछता रहा हूँ
आखिर
ये दोस्ती ही
क्यों की?
अच्छी रचना।
ReplyDeleteबुरे वक्त में परछाई भी धोखा दे देती है और फिर पछतावा ही रह जाता है।
अच्छे भाव।
वक्त के साथ बदलती परछाई ..... सुंदर
ReplyDeleteकभी-कभी ये परछाइयां ही बहुत बडा सच लगती हैं ।
ReplyDeleteखूबसूरत भावनाओं की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति । शुभकामनायें ।
बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!!!
ReplyDeleteअंधेरों में तो परछाई भी साथ नहीं देती ... ये बात बिलकुल सही है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBeautifully worded !
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
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