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06 March 2011

खुल गया है राज़

जिन परछाईयों से
मैं बातें किया करता था 
अक्सर
और चला करता था
हँसते हुए
आज
उन परछाईयों का
राज़ खुल गया है
और मैं पछता रहा हूँ
आखिर
ये दोस्ती ही
क्यों की?


9 comments:

  1. अच्‍छी रचना।
    बुरे वक्‍त में परछाई भी धोखा दे देती है और फिर पछतावा ही रह जाता है।
    अच्‍छे भाव।

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  2. वक्त के साथ बदलती परछाई ..... सुंदर

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  3. कभी-कभी ये परछाइयां ही बहुत बडा सच लगती हैं ।
    खूबसूरत भावनाओं की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति । शुभकामनायें ।

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  4. बहुत बढ़िया!!!

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  5. अंधेरों में तो परछाई भी साथ नहीं देती ... ये बात बिलकुल सही है ..

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  6. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

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