कहीं रत जगे हैं
कहीं अधूरी मुलाकातें हैं
हवाओं की खामोशी में
आती जाती सांसें हैं ।
डरता है कुछ कहने से
मन की अजीब चाहतें हैं
किसी कोने मे दबी हुई
अब भी अनकही बातें हैं।
©यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
बहुत सुन्दर यशवंत..
ReplyDeleteसस्नेह.
वाह ... बेहतरीन भाव संयोजन ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यशवन्त...सस्नेह
ReplyDeleteअनकही बातें.....
ReplyDeleteछुपी रहती है..
अक्सर...
हर किसी के
पारिवरिक जीवन में..
पर कविता के रूप में पढ़ी
पहली बार...
कम शब्द, गहरी बात!
ReplyDeleteवाह||||
ReplyDeleteलाजवाब
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
एक मेरी तरफ से...
कहना तो बहुत कुछ चाहते थे उनसे..
पर इस जुबान ने साथ ना दिया
कभी वक्त की ख़ामोशी में खामोश रह गए
कभी उनकी ख़ामोशी ने कुछ कहने ना दिया..]
:-)
बहुत खूब|||
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
:-)
किसी कोने मे दबी हुई
ReplyDeleteअब भी अनकही बातें हैं।
बेहतरीन रचना,,,,,
awesome ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबाते हैं ...बातो का क्या हैं ...
ReplyDeletesundar panktiyan
ReplyDeleteकिसी कोने मे दबी हुई
ReplyDeleteअब भी अनकही बातें हैं।
किसी अपने से कह डालिए
अगर दुःख है तो आधा और
सुख है तो दूना होना निश्चित है .... !!
बहुत ही अच्छा .......
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी!
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