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22 April 2013

महंगाई के इस दौर में

आसमान को छूती
महंगाई के इस दौर में
सिर्फ इंसान ही सस्ता है
जो ज़मीन पर था
और अब भी
ज़मीन पर ही खड़ा है

वह इंसान
कभी आदमी के रूप में
कभी औरत के रूप में
आसमान की छत
और ज़मीन के फैले आँगन में
कभी लेटता है
कभी बैठता है

उस पर होने लगा  है
असर
पड़ोसी आवारा जानवरों की
संगत का
जो दुनियावी रिश्तों
और सोच से मुक्त हो कर
भोग के समुद्र में लगाते हैं
कितनी  ही डुबकियाँ
या  लगाते  हैं लोट
भूख की खुरदरी
और चुभती रेत पर

यह दौर है
बदलाव का
बदलती तकनीक का
जिसके सामने की सड़क
ले जाती है
उसी पिछले चौराहे पर
जहां हर रोज़
मिट्टी से भी कम दाम पर
आदम और हव्वा
बिकते हैं 
तुल कर 
महंगाई के तराजू पर ।

~यशवन्त माथुर©

25 comments:

  1. NAVIN C. CHATURVEDI
    अच्छी कविता है

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  2. Ramakant Singh
    यह दौर है
    बदलाव का
    बदलती तकनीक का
    जिसके सामने की सड़क
    ले जाती है
    उसी पिछले चौराहे पर
    जहां हर रोज़
    मिट्टी से भी कम दाम पर
    आदम और हव्वा
    बिकते हैं
    तुल कर
    महंगाई के तराजू पर ।

    एक कड़वी सच्चाई बहुत खूब

    ReplyDelete
  3. sangeeta swarup
    सटीक और गहन रचना

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  4. vibha rani Shrivastava
    बहुत गहन रचना .......
    सबसे सस्ताच तो आज इंसान ही है .........
    God Bless U .

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  5. Saras Darbari
    आक्रोश और बेचारगी का वह स्वर जो कितनी ही बार विचारों में घुमड़ता है ..फिर परिस्तिथियों के सामने विवश हो जाता है ...गहन !!!

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  6. Shalini Rastogi
    आज के समय की विकृत व वीभत्स सच्चाई ...

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  7. Bhavana Lalwani
    yashwant ji .. this tym u nailed it .. bahut hi umda likha hai .. aur bikul sateek shabdon mein aam adami ke vichar likh daale hain

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  8. Anita Nihalani
    आज के हालातों की असलियत को बयां करती मार्मिक पोस्ट

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  9. Mohan Srivastava poet
    bahut sundar prastuti ,meri hardik shubh kamanaye

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  10. Digamber Naswa
    आज का वातावरण शब्दों में उतार दिया ... कमाल है यशवंत जी ..

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  11. Nihar Ranjan
    बहुत गहन रचना यशवंत भाई. बधाई स्वीकारें.

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  12. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    --
    शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  13. Maheshwari Kaneri
    महंगाई के इस तराजू में इंसान तिल तिल कर तुल रहा ..सुन्दर भाव..शुभकामनायें!

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  14. Snigdha Ghosh Roy
    the sarcasm or vyangya is quite well ensconced in the poem

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  15. Nisha Mittal
    सुन्दर रचना एक सार्थक सन्देश के साथ

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  16. Nivedita Srivastava
    impressive thought .......

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  17. कालीपद प्रसाद
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  18. P.N. Subramanian
    . "आज" का सही चित्रण.बेहद सुंदर रचना.

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  19. aruna kudesia
    सुन्दर और गहन रचना ........

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  20. sadhana vaid
    तल्ख़ सचाई को बेबाकी से बयान करती एक बेहतरीन प्रस्तुति ! बधाई एवँ शुभकामनायें !

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  21. Deepak Kalathiya
    सुन्दर रचना एक सार्थक सन्देश के साथ

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  22. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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