प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

06 April 2013

भले मानसों की महफिल में.........

भले मानसों की महफिल में, क़व्वालियाँ हैं,तालियाँ हैं।
भीतर के काले दिल में, फितरती कहानियाँ हैं।। 

हम सोचते हैं अक्सर,गर हम भी वही होते। 
तो जाम बन कर गिलास से, उफन कर गिर रहे होते ।।  

झीने पर्दों के भीतर  की, रोशन रंगीनियों में। 
ज़ुदा होती खुद ही से, खुद ही की परछाईयाँ हैं।।

भले मानसों की महफिल में, क़व्वालियाँ हैं,तालियाँ हैं।
उनकी काबिलियत में शामिल,नाकाबिल मेहरबानियाँ हैं। । 

~यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. बहुत खूब .... सच को बयान करती गज़ल

    ReplyDelete
  2. बहुत ही प्यारी सच को बयाँ करती गज़ल

    ReplyDelete
  3. आज तो अलग अंदाज़ में ही लेखनी चली :))
    बहुत ही खुबसुरत !!
    शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  4. सटीक रचना

    ReplyDelete
  5. बहुत बेहतरीन सुंदर गजल!!!

    RECENT POST: जुल्म

    ReplyDelete
  6. जिंदगी के खोखलेपन को बयां करती कविता..

    ReplyDelete
  7. सच को बयाँ करती सुन्दर गज़ल...

    ReplyDelete
  8. भले मानसों की महफिल में, क़व्वालियाँ हैं,तालियाँ हैं।
    भीतर के काले दिल में, फितरती कहानियाँ हैं।।

    bahut khoob likha hai

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
+Get Now!