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01 March 2011

ये मन भी ....

बहुत अजीब होता है
ये मन भी
कहाँ होता है
कहाँ तक ले जाता है
कैसे कैसे दृश्य
कभी जहाजों की उड़ान
कभी दूर अनंत की सैर
कभी हिमालय की गोद में
कभी मरू का रोमांच

गम को खुशी
खुशी को गम
रंक को राजा
राजा को रंक
बना  देता है
बैठे बैठे
उम्मीदों के
हवाई किले

जिसे पा  न सका
वो भी
करीब
महसूस होता है
मृग  मरीचिका जैसा
ये मन
बहुत अजीब होता है.

13 comments:

  1. मन तो ऐसा ही होता है यशवंत जी ....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

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  2. मन की बदौलत ही तो कल्पनाओं का सृजन होता है , अगर ये अजीब मन न अपना होता तो जीने का कोई हल नहीं होता

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  3. सचमुच बड़ा अजीब होता है मन! सुन्दर!

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  4. मन को पिंजड़े में मत पालो .........अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई

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  5. सही बात है बहुत ही अजीब होता है। धन्यवाद।

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  6. मन तो वाकई में बहुत अजीब होता है...इतना अजीब न होता तो शायद मन-मन न होता...
    बहुत सुंदर

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  7. .बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति|धन्यवाद।

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  8. मन को बांधना कहाँ आसान है..... सुंदर भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति

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  9. सही कहा आपने .. मन सच में अजीब होता है ... :)

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  10. man kee udanon kee khoobsurat abhivyakti..

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  11. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  12. बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना

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